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राही बनना ही तो हीरा बनना है, स्वयं राही शब्द ही विलोम-रूप से कह रहा हैराही हीरा
और इतना कठोर बनना होगा
तन और मन को तप की आग में तपा-तपा कर जला-जला कर राख करना होगा यतना घोर करना होगा। तभी कहीं चेतन – आत्मा खरा उतरेगा। खरा शब्द भी स्वयं विलोमरूप से कह रहा है... राख बने बिना खरा-दर्शन कहाँ ? राख खरा और आशीष के हाथ उटाली-सी माटी की मुद्रा उदार समुद्रा।
आज माटी को बस फुलाना है पात्र से, परन्तु अनुपात से
पुक पाटी :: 37