________________
जल में मिल कर नहीं, जग को जल के तल तक, भेज कर उस पर ऊपर रहना चाहता है जल में मिल कर नहीं ! हे मानी, प्राणी ! पानी को तो देख,
और अब तो पानी-पानी हो जा"! हे प्रमाण प्रभो !
मान का अवमान कब हो?" और, माटी की देशना की धारा अभी टूटी नहीं फिर भी ! अभिधा से हटकर व्यंजना की ओर गति है उसकी, कि
बीज का वपन किया है जल का वर्षण हुआ है बीज अंकुरित हुए हैं
और कुछ ही दिनों में फसल खड़ी हो लहलहातीबालबाली' 'अबला-सी! पर, हिम ही नहीं हिमानी - लहर भी कछ ही पलों में उस पकी फसल को
मूक माटी :: 59