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________________ .कीका: . :: घबराती है और वह घबराहट न ही जल से है न ही जल के गहराव से, परन्तु जल की तरल सत्ता के विभाव से है जल की गहराई को छोड़कर जल की लहराई में आ कर तैरता हुआ-सा'! अध-डूबा हिम का खण्ड है मान का मापदण्ट'' | वह सरलता का अवरोधक है गरलता का उद्बोधक है इतना ही नहीं, तरलता का अति शोषक है और सघनता का परिपोषक ! न ही तैरना जानता है. और न ही तैरना चाहता है खेद की बात है, कि तरण और तारक को डुबोना चाहता है वह। जल पर रहना चाहता है पर, 52 :: मूक मार्टी
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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