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________________ परन्तु, भूल कर भी फूलते नहीं तुम ! माटी - सम तुम में आती नमी ना क्या यह तुम्हारी कमी ना ? बता दो रे कमीना : तुम में कहाँ है वह जल-धारण करने की क्षमता ? जलाशय में रह कर भी युगों-युगों तक नहीं बन सकते जलाशय तंम । मैं तुम्हें हृदय-शून्य तो नहीं कहूँगा परन्तु पाषाण-हृदय अवश्य है तुम्हारा, दूसरों का दुःख-दर्द देख कर भी नहीं आ सकता कभी उसे पसीना है ऐसा तुम्हारा "सीना। फिर भी ऋषि - सन्तों का सदा सदुपदेश - सदादेश हमें यही मिला, कि पापी से नहीं पर! पाप से, पंकज से नहीं 57 :: मूक माटी
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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