________________
"नीर का क्षीर बनना ही वर्ण-लाभ है, वरदान है।
और
क्षीर का फट जाना ही वर्ण-संकर है अभिशाप है इससे यही फलित हुआ।" ...... . . .:: अलं विस्तरेण !
:
:::: :
-
"अरे कंकरो ! माटी से मिलन तो हुआ पर माटी में मिले नहीं तुम ! माटी से छुवन तो हुआ पर माटी में घुले नहीं तुम ! इतना ही नहीं, चलती चक्की में डाल कर तुम्हें पीसने पर भी अपने गुण-धर्म भूलते नहीं तुम ! भले ही चूरण बनते, रेतिला मादी नहीं बनते तुम !
-
-
-
जल के सिंचन से भीगते भी हो
मूक माटी :: 49