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बरना वर्ण-संकर-दोष को
"वरना होगा ! और यह अनिवार्य होगा। इस कथन से वर्ण-लाभ का निषेध हुआ हो ऐसी बात नहीं है, नीर की जाति न्यारी है क्षीर की जाति न्यारी,
परस-रस-रंग भी परस्पर निरे-निरे हैं
और यह सर्व-विदित है, फिर भी यथा-विधि, यथा-निधि क्षीर में नीर मिलाते ही नीर, क्षीर बन जाता है।
और सुनो ! केवल वर्ण-रंग की अपेक्षा माय का क्षीर भी धवल है आक का क्षीर भी धवल है दोनों ऊपर से विमल हैं परन्तु परस्पर उन्हें मिलाते ही विकार उत्पन्न होता हैक्षीर फट जाता है पीर बन जाता है वह !
48 :: मूक माटी