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सुनते हो क्या नहीं? कर्ण तो ठीक हैं तुम्हारे ! फिर वर्ण-संकर की चर्चा कौन करे ?
अर्चा मौन करें हम !"
और"
कंकर मौन हो जाते हैं। इस पर भी शिल्पी का भाव ताव नहीं पकड़ता जरा-सा भी। धरा-सा ही सहज साम्ब भाव प्रस्तुत होता है उससे
"कि
इस प्रसंग में वर्ण का आशय ने ही रंग से है न ही अंग से वरन् चाल-चरण, ढंग से है। वानी ! जिसे अपनाया है उसे जिसने अपनाया है उसके अनुरूप अपने गुण-धर्म
रुप-स्वरूप को परिवर्तित करना होगा
मूक माटी :: 47