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संकर-दोष का वारण करना था मुझे
कंकर-कोष का वारण किया ।" इस बात को सुन कर कंकर कुछ और गरम हो जाते हैं कंकरों के अधरों में विशेष स्पन्दन है
और
वचनों में पूर्व की अपेक्षा
उष्णता का अभिव्यंजन है। "गात की हो या जात की, एक ही बात हैहममें और माटी में समता-सदृशता है विसदृशता तो दिखती नहीं ! तुम्हें दिखती है क्या शिल्पी जी ? तुम्हारी आँखों की शल्य-चिकित्सा हुई है क्या ?
और रही वर्ण की बात ! वों से वर्णन क्या करें ? वह भी समान है हम दोनों में जो सामने है कृष्ण जी का कृष्ण वर्ण है कृष्य वर्ण नहीं।
45 :: पूक माटी