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मृदुता की यह चरम यशा है
""धन्य !"
" मृदु माटी से लघु जाति से
मेरा यह शिल्प
निखरता है
और
खर-काठी से
गुरु जाति से
सो अविलम्ब
बिखरता है
माटी का संशोधन हुआ, माटी को सम्बोधन हुआ,
परन्तु,
निष्कासित कंकरों में
समुचित-सा अनुभूत संक्रोधन हुआ ।
तथापि संयत भाषा में
शिल्पी से निवेदन करते हैं वे कंकर, कि
"हमारा वियोगीकरण
माँ माटी से
किस कारण हो रहा है ? अकारण ही !
क्या कोई कारण हैं ?"
इस पर तुरन्त
मृदु शब्दों में शिल्पी कहता है कि
दूसरी बात यह है कि
मूकमाटी 45