________________
और माटी श्वास का शमन कर अपमे भार को लघु करती-सी" उपाश्चम की ओर निहारती है प्रतीक्षा की मुद्रा में। रजत-पालकी में विराजती पर, ऊबी-सी. लज्जा-संकोचवती-सी राजा की रानी यात्रा के समय
रणवास की ओर निहारती-सी ! यहाँ पर मिलता है पूरा ऊपर उठा हुआ सुकृत का सर।
और माटी को प्राप्त हुआ है प्रथम अवसर!
यह
उपाश्रम का परिसर है यहाँ पर, कसकर परिश्रम किया जाता है निशि-वासर । यहाँ पर योग-शाला है प्रयोग-शाला भी जोरदार ! जहाँ पर शिल्पी से मिलता है शिक्षण-प्रशिक्षण क्षण प्रतिक्षण,
42 :: मूक माटी