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बाहर आ पूरी बोरी को
भिगोती-सी अनुकम्पा : इस विषय में किसी भांति हो नहीं सकता संशय, कि विषयी सदा विषय-कषायों को ही बनाता अपना विषय। और हृदयवती आँखों में दिवस हो या तमस् चेतना का जीवन हा..: . . . ..... झलक आता है, भले ही वह जीवन दया रहित हो या दया सहित।
और दया का होना ही जीव-विज्ञान का
सम्यक् परिचय है। परन्तु पर पर दया करना बहिदृष्टि-सा"मोह-मूढ़ता-सा" स्व-परिचय से वंचित-सा" अध्यात्म से दूर प्रायः लगता है
ऐसी एकान्त धारणा से अध्यात्म की विराधना होती है।
मूक माटी :: 37