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उस स्थान में बोरी की रूखी स्पर्शा भी घनी मृदुता में डूबी जा रही है।
माटी के मुख पर उदासी की सत्ता परी हैं परत्र प्रयास करने को
मना कर रही है। माटी की इस स्थिति में कारण यह है कि
इस छिलन में इस जलन में निमित्त कारण 'मैं ही हूँ। यूँ जान कर पश्चाताप की आग में झुलसती-सी माटी। और उसे देख कर वहीं पली पड़ी-पड़ी भीतरी अनुकम्पा को चैन कहाँ ? सहा नहीं गया उसे रहा नहीं गया उसे
और वह रोती-बिलखती दृग-बिन्दुओं के मिष स्वेद कणों के बहाने
36 :: मूक पाटी