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पाठी का इतिहास माटी के मुख से सुन शिल्पी सहज कह उठा
कि
इन गालों पर पड़ी हैं ऐसी दशा में
गालों का सछिद्र होना
स्वाभाविक ही हैं
और
प्यार और पीड़ा के घावों में
अन्तर भी तो होता हैं,
रति और विरति के भाव एक से होते हैं क्या ?"
वास्तविक जीवन यही है सात्त्विक जीवन यही है
धन्य !
और
यह भी एक अकाट्य नियम है
कि
अर्थ यह हुआ कि
पीड़ा की अति ही पीड़ा की इति है
और
पीड़ा की इति ही सुख का अथ" |
अति के बिना
इति से साक्षात्कार सम्भव नहीं और
इति के बिना
अथ का दर्शन असम्भव !
मूकमाटी 33