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उस दीर्घ श्वास ने ही शिल्पी के सन्देह को विदह बना दिया
और विश्वास को श्वास लेने हेतु एक देह मिली।
सही-सही अवधान नहीं हुआ सही समाधान नहीं हुआ। जिज्ञासा जीवित रही शिल्पी की। इसको देखकर ही
""माटी अव्यक्त भावों को व्यस्त करती है शब्दों का आलम्बन ले :
"अमीरों की नहीं गरीबों की बात है। कोठी की नहीं कुटिया की बात है
घा-काल में थोड़ी-सी वर्षा में टप-टप करती है
और उस टपकाव से धरती में छेद पड़ते हैं, फिरतो." इस जीवन-भर रोना ही रोना हुआ है दीन-हीन इन आँखों से धाराप्रवाह अश्रु-धारा बह
12 :: मूक पाटी