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बार-बार बस, बोरी में से झांक रही हैं माटी भोली ! सतियों को भी यतियों को भी प्यारी है यही प्राचीना परिपाटी। इसके सामने बना लिहित-शीत' नूतन-नवीना इस युग की जीवन-लीला कीमत कम पाती है।
तभी तो.. संवेदनशील शिल्पी ने माटी को पूछा है
"तामसता से दूर सात्त्विक गालों पर तेरे घाव-से लगते हैं, छेद-से लगते हैं, सन्देह-सा हो रहा है भेद जानना चाहता हूँ यदि कोई बाधान "हो"तो'' बताने की कृपा करोगी ?"
कुछ क्षणों के लिए माटी के सामने अतीत लौट आता है और उत्तर के रूप में और कुछ नहीं केवल दीर्घ श्वास !
मूक पाटी ::