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माटी के मुख पर
क्रुधन
क्या यह
राजसता का राज तो नहीं है?
लगता है, कि
की साज क्यों नहीं छाई ?
कुछ अपवाद छोड़ कर बाहरी क्रिया से
भीतरी जिया से
सही-सही मुलाकात की नहीं जा सकती ।
और
गलत निर्णय ले
जिया नहीं जा सकता । यूँ ही यह जीवन शंका- प्रतिशंका करता
बलानुसार उत्तर देता अरुक अथक जागे-आगे चलता ही जा रहा स्वयं
कि
मूकमाटी
MARDAN
इधर’'
भोली माटी
कुछ ना बोली
और
बोरी में भरी जा रही है " बोरी के दोनों छोर बन्द हैं
बीचों-बीच मुख है
और
सावरणासाभरणा
लज्जा का अनुभव करती, नवविवाहिता तनूदरा
घूँघट में से झाँकती - सी