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________________ leka माटी के मुख पर क्रुधन क्या यह राजसता का राज तो नहीं है? लगता है, कि की साज क्यों नहीं छाई ? कुछ अपवाद छोड़ कर बाहरी क्रिया से भीतरी जिया से सही-सही मुलाकात की नहीं जा सकती । और गलत निर्णय ले जिया नहीं जा सकता । यूँ ही यह जीवन शंका- प्रतिशंका करता बलानुसार उत्तर देता अरुक अथक जागे-आगे चलता ही जा रहा स्वयं कि मूकमाटी MARDAN इधर’' भोली माटी कुछ ना बोली और बोरी में भरी जा रही है " बोरी के दोनों छोर बन्द हैं बीचों-बीच मुख है और सावरणासाभरणा लज्जा का अनुभव करती, नवविवाहिता तनूदरा घूँघट में से झाँकती - सी
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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