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भोर में ही उसका मानस विभोर हो आया, और
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अब तो वह चरण निकट-सन्निकट ही आ गए । फैलाव घट रही है. :: धीरे-धीरे दृश्य सिमट-सिमट कर घना होता आ रहा है और आकाशीय विशाल दृश्य भी इसीलिए शून्य होता जा रहा है समीपस्थ इष्ट पर दृष्टि टिकने से अन्य सब लुप्त ही होते हैं।
लो ! धन्य ! पूरा का पूरा एक चेहरा, जो भरा है अनन्य भावों से. अदम्य चावों से सामने आ उभरा है !
जिसका भाल वह बाल नहीं है वृद्ध है, विशाल है भाग्य का भण्डार ! सुनो ! जिसमें
26 :: मूक माटी