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अचेत से सचेत हो खेत से खेत, खेत से खेत वेग-समंत वेद-समेत विस्फारित दृग-बाला एक मृग छलाँग भरता पथ को.लांघ जाता है. .. :: .. ... . : ..::. . : . . सुदूर"जा अन्तर्धान
"खो जाता है। 'बायें हिरण दायें जायलंका जीत राम घर आय' इस सूक्ति की स्मृति ताजी हो आई
और दूर"सुदूर" माटी ने देखाघाटी में दिखे कौन वह ? परिचित है या अपरिचित ! अपनी ओर ही बढ़ते बढ़ते आ रहे वह श्रमिक-चरण"! और फूली नहीं समाती, भोली माटी यह घाटी की ओर ही अपलक ताक रही है
पूक माटी ::