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जीतती, उपहास करतो-सी अनगिन फूलों की अनगिन मालाएँ तैरती - लैरती तट तक"आ समर्पित हो रही हैं माटी के चरणों में, सरिता से प्रेषित हैं वे।
यह भी एक दुर्लभ दर्शनीय दृश्य है
सरिता-तट में फेन का बहाना है दधि छलकाती है मंगल-जनिका हँसमुख कलशी हाथ में लेकर खड़े हैं सरिता-तट वह
और देखो ना ! तृण-बिन्दुओं के मिष उल्लासवती सरिता-सी धरती के कोमल केन्द्र में करुणा की उमड़न है, और उसके अंग - अंग एक अपूर्व पुलकन ले
स्वाभाविक नर्तन में !
20 : मक माटी