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आज-जैसा प्रभात विगत में नहीं मिला
और प्रभात आज का काली रात्रि की पीठ पर हलकी लाल स्याही से कुछ लिखता है, कि यह अन्तिम रात है
और
यह आदिम प्रभात;
यह अन्तिम गात
..
.. . . . .
और
यह आदिम विराट !" और, हर्षातिरेक से उपहार के रूप में कोमल कोपलों की हलकी आभा-घुली हरिताभ की साड़ी देता है रात को। इसे पहन कर जाती हुई वह प्रभात को सम्मानित करती है मन्द मुस्कान के साथ! भ्रात को बहन-सी।
इधर" सरिता में लहरों का बहाना है, चौंदी की आभा को
मृक माटी :: 19