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________________ स्वभाव से ही सुधारता है स्वपन ं 'स्वपन``"स्वपन अब तो चेतें विचारें अपनी ओर निहारें 186 : मूक माटी अपने अपन अपन । - यहाँ चल रही है केवल तपन तपन तपन'! वसन्त चला गया उसका तन जलाया गया, तथापि रूप पर, गन्ध पर, रस पर, परिणाम जो हुआ है परस पर पर्त-पर-पर्त गहरा लेप चढ़ गया है। वह प्राकृत सब कुछ ढक चुका है वह विषय बहुत गूढ़ बन चुका है इसीलिए वन-उपवनों पर, कण-कणों पर उसका प्रभाव पड़ा है प्रति जीवनों पर यहाँ: रग-रग में रस वह रम गया है रक्त बन कर । दाह-संस्कार के अनन्तर भी पूरा परिसर यह स्नपित स्नात होना अनिवार्य है । परन्तु यह क्या ! अतिथि होकर भी अति क्यों ? आय नहीं होती, नहीं सही
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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