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व्यय से भी कोई चिन्ता नहीं
परन्तु
अपव्यय महा भयंकर है।
भविष्य भला नहीं दिखता अव
भाग्य का भात धूमिल है !
अधर में डुलती-सी बादल - दलों की बहुलता
अकाल में काल का दर्शन क्यों ?
यूँ कहीं निखिल को एक ही कवल बना एक ही बार में
विकराल गाल में डाल ....बिना चबाये साबुत निगलना चाहती है !
एक भाटी
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