SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पोल की छाया की अवधि सीमा कहाँ ? वह सब निधियों की निधि है बोध की जाया-सी सदियों से शुचि है ना ! माटी की और मौन मुड़ता है पहले मोम समान . मौन गलला-पिघलता है और मुस्कान वाला मुख खुलता हैं उसका। मृदु - मीठे मोदक-सम समतामय शब्द-समृह निकलता है उसके मुख से : "ओ माँ माटी ! शिल्पी के विषय में तेरी भी. .: आस्था अस्थिर-सी लग रही है। यह बात निश्चित है कि जो खिसकती-सरकती है सरिता कहलाती है सो अस्थाई होती है। और सागर नहीं सरकता सो स्थाई होता है परन्तु, सरिता सरकती सागर की ओर ही ना ! अन्यथा, न सरिता रहे, न सागर ! यह सरकन ही सरिता की समिति है, मूक माटी :: 119
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy