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________________ कुन्दित-भंगित होती देख शिल्पी की दोनों आँखें अपनी ज्योति को 118: मूकमाटी I बहुत दूर भीतर भेजती हैं और द्वार बन्द कर लेती हैं इससे यही फलित हुआ कि इस अवसर पर आँखों का अनुपस्थित रहना ही होनहार अनर्थ का असमर्थन हैं । ये आँखें भी बहुत दूरदर्शिनी हैं। थोड़े में यूँ कहूँ शिल्पी के अंग-अंग और उपांग उत्तमांग तक उसी पथ के पथिक बने हैं जिस पथ के पथिक पद बने हैं I माटी और शिल्पी दोनों निहार रहे हैं उसे उनके बीच में मौन जो खड़ा है मौन से कौन वो बड़ा है ? मौन की मौनता गौण कराता हो और मौन गुनगुनाता है उसे जो सुने, वहीं बड़ा है मौन से I बोल की काया वह अवधि से रची हैं ना ढोल की माया वह परिधि से बची है ना ! परन्तु सुनो !
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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