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________________ यह निरखन ही सरिता की प्रमिति है, बस यही तो आस्था कहलाती है। आस्था छटपटाती रहती है। जब तक उसे चरण नहीं मिलते चलने को, आस्था के बिना आचरण में आनन्द आता नहीं, आ सकता नहीं। फिर, आस्थावाली सक्रियता ही निष्ठा कहलाती है, यह भी बात ज्ञात रहे ! निगूढ़ निष्ठा से निकली निशिगन्धा की निरी महक-सी बाहरी-भीतरी वातावरण को सुरभित करती जो वही निष्टा की फलवती प्रतिष्ठा प्राणप्रतिष्ठा कहलाती है, जन-जन भविजन के मन को सहलाती - सुहाती हैं। धीरे-धीरे प्रतिष्ठा का पात्र फैलाव पाता जाता है पराकाष्ठा की ओर जब प्रतिष्ठा बहती - वहती स्थिर हो जाती है जहाँ बही तो समीचीना संस्था कहलाती है। यूँ क्रम-क्रम से 'क्रम' बढ़ाती हुई सही आरथा ही वह निष्टा-प्रतिष्टाओं में से होती हुई सच्चिदानन्द संस्था की 12} :: मूक माटी
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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