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________________ स्निग्धता की अधिकता माटी में और लाना है ना ! गोंद बनाना है उसे पगलियों से ही सम्भव है यह कारण कि कर्तव्य के क्षेत्र में कर प्रायः कायर बनता है और . कर माँगता है कर वह भी खुल कर ! इतना ही नहीं, मानवत्ता से घिर जाता है मानवता से गिर जाता है। इससे विपरीत-शील है पांव का परिश्रम का कायल बना यह पूरा का पूरा, परिश्रम कर प्रायः घायल बनता है और पॉव नता से मितता है पावनता से खिलता है। लो ! यकायक यह क्या घटने को! श्वास का सूरज वह अस्ताचल की ओर सरकता-सा शिल्पी का दाहिना पद चेतना से रहित हो रहा है खून का बहाव था जिसमें उस पद में अब खून का अमाव हो रहा है। [14 :: मूक माटी
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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