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और दूसस पद कुछ पदों को कहता है पद-पद पर प्रार्थना करता है प्रभु से
कि पदाधिनावी नाकार, पर पर पद-पात न करूं, उत्पात न करूं, कभी भी किसी जीवन को पद-दलित नहीं करूं, हे प्रभो ! हे प्रभो ! और यह कैसे सम्भव हो सकता है ? शान्ति की सत्ता-सती माँ-माटी के माथे पर, पद-निक्षेप ! क्षेम-कुशल क्षेत्र पर प्रलय की बरसात है यह। प्रेम-वत्सल शैल पर अदय का पविपात है यह। सुख-शान्ति से दूर नहीं करना है इस युग को
और दुःख-क्लान्ति से चूर नहीं करना है।
माटी में उतावली की लहर दौड़ आती हैं स्थिति आवती की भी जहर छोड़ जाती है
मुक मादी :: ॥5