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________________ 1: कई गुणा अधिक साहित्यिक रस को आत्मसात् करता है श्रद्धा से अभिभूत श्रोता वह । प्रवचन-श्रवण-कला-कुशल है; हंस - राजहंस सदृश श्रीजीविषेक शीतवा यह समुचित है कि रसोइया की रसना रसदार रसोई का 4 रसास्वादन कम कर पाती है। क्योंकि, प्रवचन - काल में प्रवचनकार, लेखन - काल में लेखक वह दोनों लौट जाते हैं अतीत में I उस समय प्रतीति में न ही रस रहता है न ही नीरसता की बात, केवल कोरा टकराव रहता है लगाव रहित अतीत से, बस ! 口 शिल्पी का आगमन हो रहा है। माटी की ओर ! फुली माटी को रौंदना है रौंद - रौंद कर उसे लोंदा बनाना है रौंदन क्रिया भी बह मूकमाटी : 113
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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