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________________ - - ! साहित्य का मन्धन करता मन्मथ-मथक बना वह उसका माथा'! मानिसटला ... भोर-विभोर हो एक टाँग वाला, पर नर्तन में तत्पर है काँटा ! मन्द-मन्द हँसता-हँसता उसका हंसा एहसास कराता है शिल्पी को कि -- - - सदा-सदियों से हंसा तो जीता है दोषों से रीता हो, परन्तु सबकी वह काया पीड़ा पहुँचाती है सबको इसीलिए लगता हैं, अन्त में इस काया का दाह-संस्कार होता हो। हे काया ! जल-जल कर अग्नि से, कई बार राख, खाक हो कर भी अभी भी जलाती रहती है आतम को बार-बार जनम ले-ले कर ! - -- - - इधर, यह लेखनी भी कह उठी प्रासंगिक साहित्य-विषय पर, कि लेखनी के धनी लेखक से और प्रवचन-कला-कुशल से भी - -- - 112 :: मुक पाटो
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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