________________
असर पड़ा है मार का लगभग वह भी घटी है। कहीं तक कहें कांटे की कैंटीली काया दिखती अब अटपटी-सी हैं। इसमें सन्देह नहीं हैं प्रायः प्राण उसके कण्ट-गत हैं श्वास का विश्वास नहीं अब, फिर भी आसमान का आधार आस हैं ना! तन का बल वह कण-सा रहता है और मन का बल वह मन-सा रहता हैं वह एक अकाट्य नियम है।
हाँ ! यही यहाँ पर घट रहा है कंटक का तन सो पूर्णतः ज्वर से घिरा है फिर भी मिट नहीं रहा वह, जो रहा है, और उसका मन मधुर ज्वार सं भरा रस पी रहा वह, इस पर किसका चित्त यह चकित नहीं होगा ? इस विस्मय का कारण भी सुनो ! मन को छल का संबल मिला हैंस्वभाव से ही मन चंचल होता है,
तथापि
!!! :: पृक मादी