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गरम चरमवाले ही शीत-धरम से भय-भीत होते हैं
और नीत-करम से विपरीत होते हैं। मेरी प्रकृति शीत-शीला है
और ऋतु की प्रकृति भी शीत-झीला है दोनों में साम्य है तभी तो अबाधित यह
चल रही अपनी मीत-लीला है। स्वभाव से ही प्रेम है हमारा
और स्वभाव में ही क्षेम है हमारा। पुरुष प्रकृति से यदि दूर होगा निश्चित ही वह विकृति का पूर होगा पुरुष का प्रकृति में रमना ही मोक्ष है, सार है।
और अन्यत्र रमना ही भ्रमना है मोह है, संसार है!
और सुनो। शमी-सन्तों से एक
मूक माटी :: ५.