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मछली की मूल का
भंजन"" चूर हुआ दुःख का।
एक दृश्य दर्शित होता है उपाश्रम के प्रांगण में: * गुरुतम भाजन है, जिसके मुख पर वस्त्र बँधा है साफ-सुथरा खादी का दोहरा किया हुआ
और उसी ओर बढ़ता है कुम्भकार
बालटी ले हाथ में। बड़ी सावधानी से धार बाँध कर जल छानता है वह धीरे-धीरे जल छनता है, इतने में ही शिल्पी की दृष्टि थोड़ी-सी फिसल जाती है अन्यत्र ।
उछलने को मचलती-सी यह मछली बालटी में से उछलती है और जा कर गिरती है माटी के पावन चरणों में"! फिर फूट-फूट कर रोती है उसकी आँखें संवेदना से भर जाती हैं
HT :: मूक माटी