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पूरा हुआ वह सुख का | धूप की आभा से भावित हो रूप का नन्दन वन। धूल का समूह वह सिन्दूर हुआ मुख का मछली की आँखें अब दौड़ती हैं सीधी उपाश्रम की ओर'! दिनकर ने अपनी अंगना को दिन-भर के लिए भेजा है उपाश्चम की सेवा में, .और वह ..... ... :: ......
आश्रम के अंग-अंग को प्रांगण को चूमती-सी
सेवानिरत-धूप"! स्थूल हैं रूपवती रूप-राशि है वह पर पकड़ में नहीं आती। पर-छुवन से परे हैं वह प्रभाकर को छोड़ कर प्रभु के अनुरूप ही सूक्ष्म स्पर्श से रीता रूप हुआ है किसका ?
धूप का मानना होगा यह परिणाम-भाव उपाश्रम की छाँव का है और
मूक माटी :: 79