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________________ मोक्षमार्ग प्रकाशक - ६४ 1 जीव अजीवका ज्ञान भए ही होय । जातै आप जीव है, शरीरादिक अजीव है। जो लक्षणादिककरि जीव अजीव की पहिचान होइ तो आपापरको भिन्नपनो भासै तातें जीव अजीवको जानना अथवा जीव अजीवका ज्ञान भए जिन पदार्थनिका अन्यथा श्रद्धानतै दुःख होता था तिनका यथार्थ ज्ञान होनेते दुःख दूरि होइ तातें जीव अजीवको जानना । बहुरि दुःखका कारन तो कर्मबन्धन है अर ताका कारण मिथ्यात्वादिक आस्रव हैं। सो इनको न पहिचान, इनको दुःख का मूल कारन न जाने तो इनका अभाव कैसे करे? अर इनका अभाव न करे तब कर्मबन्ध कैसे न होड़, तातें दुःख ही होय । अथवा मिथ्यात्वादिक भाव हैं सो ए दुःखमय हैंसों इनको जैसे के तैसे न जाने तो इनका अभाव न करे तब दुःखी ही रहे, तातैं आस्रयको जानना बहुरि समस्त दुःखका कारण कर्मबन्धन है सो याको न जाने तब यातें मुक्त होनेका उपाय न करे तब ताकै निमित्त दुःखी होइ तातें बंधको जानना । बहुरि आस्रवका अभाव करना सो संबर है, याका स्वरूप न जानै तो या विषै न प्रवर्ते तब आत्रय ही रहे तातें वर्तमान या आगामी दुःख ही होइ तातैं संवरको जानना । बहुरि कथंचित् किंचित् कर्मबंधका अभाव करना ताका नाम निर्जरा है सो याको न जाने तब याकी प्रवृत्ति का उद्यमी न होइ । तब सर्वथा बंध ही रहे तातै दुःख ही होइ तातैं निर्जराको जानना । बहुरि सर्वथा सर्वकर्मबंधका अभाव होना लाका नाम मोक्ष है। सो याको न पहिचाने तो याका उपाय न करें, तब संसारविषै कर्मबंध निपजै दुःखनिहीको सहै तातें मोक्षको जानना। ऐसे जीवादि सप्त तत्त्व जानने । बहुरि शास्त्रादिक करि कदाचित् तिनको जानै अर ऐसे ही हैं ऐसी प्रतीति न आई तो जाने कहा होय तातें तिनका श्रद्धान करना कार्यकारी है। ऐसे जीवादि तत्त्वनिका सत्य श्रद्धान किए ही दुःख होनेका अभावरूप प्रयोजन की सिद्धि हो है । ता जीवादिक पदार्थ हैं ते ही प्रयोजनभूत जानने । बहुरि इनके विशेषभेद पुण्यपापादिकरूप तिनका भी श्रद्धान प्रयोजनभूत है जातें सामान्यत विशेष बलवान है। ऐसे ये पदार्थ तो प्रयोजनभूत हैं तातें इनका यथार्थ श्रद्धान किए तो दुःख न होय, सुख होय अर इनको यथार्थ श्रद्धान किए बिना दुःख हो है, सुख न हो है । बहुरि इन बिना अन्य पदार्थ हैं, ते अप्रयोजनभूत हैं । जातै तिनको यथार्थ श्रद्धान करो वा मति करो, उनका श्रद्धान किछू सुख दुःखको कारण नाहीं । इहाँ प्रश्न उपजे है, जो पूर्वे जीव अजीव पदार्थ कहे तिनविषै तो सर्व पदार्थ आय गए, तिन बिना अन्य पदार्थ कौन रहे जिनको अप्रयोजनभूत कहे । ताका समाधान - पदार्थ तो सर्व जीव अजीवविषे ही गर्भित हैं परन्तु तिनजीव अजीवनिके विशेष बहुत हैं। तिन विषै जिन विशेषनिकरि सहित जीव अजीवको यथार्थ श्रद्धान किये स्व-परका श्रद्धान होय, रागादिक दूर करनेका श्रद्धान होइ, तातें सुख उपजै अयथार्थ श्रद्धान किए स्व-परका श्रखान न होइ, रागादिक दूर करनेका श्रद्धान न होइ तातें दुःख उपजै, तिन विशेषनिकरि सहित जीव अजीव पदार्थ तो प्रयोजनभूत जानने । बहुरि जिन विशेषनिकरि सहित जीव अजीवको यथार्थ श्रद्धान किए वा न किए स्व-परका श्रद्धान होइ वा न होइ अर रागादिक दूर करनेका श्रद्धान होइ वा न होइ, किछू नियम नाहीं, तिन विशेषनिकरि सहित जीव अजीव पदार्थ अप्रयोजनभूत जानने। जैसे जीव अर शरीरका चैतन्य मूर्त्तत्वादिक विशेषनिकरि श्रद्धान करना तो प्रयोजनभूत है अर मनुष्यादि पर्यायनिका वा घटपटादिककी
SR No.090284
Book TitleMokshmarga Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Niraj Jain, Chetanprakash Patni, Hasmukh Jain
PublisherPratishthacharya Pt Vimalkumar Jain Tikamgadh
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size10 MB
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