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[ ] हम तो केवल घास बेचने वाले लड़के हैं हमारा मूलरूप महाभारत की कथानों में है। इसी पर से परस्पर में कथा वार्ता चल पड़ती है । मनोवेम अपने अनुभव की अराम्भव घटनाएँ सुनाता है और जैसे ही ब्राह्मण विद्वान् उसका विरोध करता है वह तत्काल उनके पुराणों से उसी प्रकार की कथा सुनाकर उन्हें चुप कर देता है । इस प्रकार मनोवेग ब्राह्मणों के शास्त्रों और धर्म की बहुत सी असम्भव बातें पवनवेग को समझाता है, जिससे पवनवेग जैन धर्म का श्रद्धानो बन जाता है और वे दोनों श्रावक का सुखो जीवन बिताते हैं।'
उक्त ग्रंथ में जहाँ कहीं अवसर आया अमितति ने जैन सिद्धान्तों और परिभाषाओं का प्रचूरता से उपयोग करते हुए लम्बे-लम्बे उपदेश इसमें दिए हैं । दूसरे, इसमें लोकप्रिय तथा मनोरंजक कहानियां भी हैं जो न केवल शिक्षाप्रद हैं बल्कि उनमें उच्चकोटि का हास्य भी है और वे बड़ी हो बुद्धिमत्ता के साथ ग्रंथ में गुम्फित हैं । अथ च, अन्त में ग्रन्थ का एक बड़ा भाग पुराणों को कहानियों से भरा हुआ है जिनको अविश्वसनीय बताते हुए प्रतिवाद करना है तथा कहीं सुप्रसिद्ध कथाओं के जन रूपान्तर भी दिए हुए हैं जिससे यह प्रमाणित हो जाम जिहावा -गान हैं :
अमितगति बहुत विशुद्ध संस्कृत लिख लेते हैं। हमें ही नहीं, बल्कि अमितगति को भी इस बात का विश्वास था कि उनका संस्कृत भाषा पर अधिकार है।' उन्होंने लिखा है कि मैंने धर्म परीक्षा दो माह के भीतर लिखकर पूर्ण की है। इनकी धर्म परीक्षा किसी पूर्ववर्ती मूल प्राकृत रचना के आधार पर हुई है, इसमें हर प्रकार की सम्भावना है ।"
स्व. पं० कैलाशचन्द सि. शास्त्री भी लिखते हैं कि अमितगति से पूर्व हरिपंण ने अपभ्रंश भाषा में धर्म परीक्षा रची थी जो जयराम को कृति की ऋणी है । पुनः हरिपेण की कृति के आधार पर अमितगति ने धर्म परीक्षा रची।।
पूज्य अमितगति को धर्म परीक्षा रविकर और शिक्षाप्रद भारतीय साहित्य का सुन्दर नमूना है। [पुराणपन्य के उत्साही अनुयायियों को एक तोखा ताना इस रचना से मिल सकता है।"
इस धर्म परीक्षा को रचना १०७० ( ईस्वी० १०१४ ) में पूर्ण हुई। यह ग्रंथ अनेक बार [विभिन्न स्थानों से ] प्रकाशित हुआ है। १. मुभाषित प्रस्ता. पन्न १०-११ ( जीवराज ग्रंथमाला ) २. वर्म परीक्षा प्रस्ता० १० १६ ए. एन. पा. ३. धर्म परीक्षा प्रस्ता- पृ० २२ ए. एन. उपा० ४. धर्म परीक्षा । प्रास्ति । प्रलोक १० ५. धर्म परीक्षा । प्रस्ता० . २२० एन० उपा० ६. सुभाषित० प्रस्ता• पृ. १. [ जीवराज ग्रन्थमाला ] ७. धर्म परीक्षा प्रस्ता. पृ. २८ ए. एनए उपा० ८. ध परीक्षा प्रशस्ति । लोक २०