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________________ [१०] ३. पंचसंग्रह जैन ग्रन्थों में पंचसंग्रह नामके अनेक ग्रन्थ हैं। यथा-दिगम्बर प्राकृत पंचसंग्रह [कर्ता-अज्ञात], श्वे. प्राकृत पंचसंग्रह, दि. संस्कृत पंचसंग्रह ( अमितगति द्वितीय ) तथा दि० संस्कृत पंचसंग्रह (श्रीपाल सुत उड्ढा विरचित ) । गोम्मटसार को भी पंचसंग्रह कहा जाता है । जिनरत्न कोश में श्वे. हरिभद्र सूरि द्वारा बनाए गए एक और पंचसंग्रह का भी उल्लेख है।' अमितगति का पंचसंग्रह प्रधानतः पाकृत पंचसंग्रह के आधार पर ही तैयार किया गया है।' पंडित हीरालाल सिद्धान्त शास्त्री का कहना है कि अमितमति ने प्राकृत पंचसंग्रह का संस्कृत भाषा में कुछ पल्लवित पद्यानुवाद किया है।' ५० लाशचन्द्र सिद्धांत शास्त्री तो कहते हैं कि "यह स्वतन्त्र रचना ही नहीं है किन्तु प्रा. पंचसंग्रह का संस्कृत श्लोकों में रूपान्तर है। अमितगति का यह पंचसंग्रह श्री उड्ढा के पंचसंग्रह का भी ऋणी है । अमितगति ने इसका बहुत अनुकरण किया है। कुछ विशेष कथन भी है, किन्तु अनुकरण अधिक है ।" __ अमितगति को यह र वना [ एवं अन्य भी रचनाएँ ] सरल व सुखसाध्य होती हुई भी गम्भीर और मधुर है । यह ग्रंथ करणानुयोग का उत्तम ग्रन्थ है । इसकी रचना शैली गोम्मटमार से विलक्षण व सरल है । अनेक स्थलों में विषय वैशष्य भी उपलब्ध होता है । गोम्मटसार कर्मकाण्ड का अध्ययन तो टीका तथा अंक संदृष्टि के बिना शक्य नहीं, परन्तु पंचसंग्रह में अंक सन्दृष्टि ग्रंथकार ने हो यथा. स्थान दे दी अतः टीका की आवश्यकता भी मूल रचना से दूर हो गई ।" __ यह ग्रंथ वि० सं० १०७३ [ईस्वी सन् १०१५1 में निर्मित हुआ । ग्रंथ रचना के समय से अनुमित होता है कि कविराज का जन्म विक्रम को ग्यारहवीं शती के प्रथम पाद के अन्त में (१०२५) में हुआ, परन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि ये कब स्वर्गवासी हुए । अब तक इस पंचसंग्रह का प्रकाशन दो बार हुआ है । १. प्राकृत पंच संग्रह । प्रस्ता. पृ० १४-१५ २. धर्म परीक्षा प्रस्ता० पृ. २२ ए. एनउपाध्ये ३. प्रा० पंचसंग्रह । प्रस्ता० पृ० १४ तथा १६ ४. सुभाषित र० म० । प्रस्ता. पृ० ११ जीवराम ग्रन्थमाला ५ पनसंग्रह । प्रस्ता पृ० ८ ६० दरबारीलालजी न्यायतीर्थ
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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