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प्रशस्ति
छंद अनुकूलामाधवसेनोऽजनि मुनिनाथो ध्वंसितमायामदनकदर्थः । तस्य गरिष्ठो गरिय शिष्य स्तत्त्वविचारप्रवणमनीषः ।।४।।
शार्दून विक्रीडितशिष्यस्तस्य मनीषिणोऽमित गतिर्गिप्रयालंबिनीम् । एनां कल्मषमोषिणी भगवती माराधनां स्थेयसोम ।। लोकानामुपकारकोऽकृतसती विध्वस्त तापाहदः । पद्मः सत्त्व निषेवितस्य विमलां गंगां हिमाद्रेरिव ॥५॥
छंद उपजातिपाराधनषायदकारि पूर्णामासश्चतुभिनंतदस्तिचित्रम् । महोद्यमानां जिनभाक्तिकानां सिध्यन्ति कृत्यानि न कानिसद्यः ॥६॥
छंद्र वंशस्थस्फटीकृता पूर्वजिनागमादियं मया जने यास्यति गौरवपरम् । प्रकाशितं कि न विशुद्धबुद्धिना महार्घतां गच्छति दुग्धतोघृतम् ॥७॥
शार्दूल विक्रीडित - यावत् तिष्ठत्ति पांडुकंबलशिला देवानिमूनि स्थिरा। यावत सिद्धिधरा त्रिलोकशिखरे सिद्ध समाध्यासिता ॥
----.- -. -- विचारमें प्रवीण थी ।।४।। माधवसेन आचार्य के शिष्य अमितगति हुवे हैं। उन्होंने यह भगवती आराधना बनाई है। यह पाप नाशिनी, संसारताप हरण करनेवाली गंगानदोके समान है। गंगानदो हिमाद्री से उत्पन्न हुई है यह भगबती आराधना अमितगत्याचार्य रूपी हिमाचलसे उत्पन्न हुई है ।।५।। आचार्यश्री ने यह ग्रन्थ केवल चार महीने में बनाया है। इसमें कुछ भी आश्चर्य नहीं है । क्योंकि महाप्रयत्नशाली जिनभक्त कौनसे कार्य सिद्ध नहीं कर सकते हैं ? पूर्व जिनागमका [शिवकोटघाचार्यका भगवती आराधना ग्रन्थ ] ।।६।। आधार लेकर मैंने यह ग्रन्थ रचा है। मेरा यह ग्रन्थ विवज्जनोंमें आदरणीय होगा । जैसे दूधसे निकाला गया घृत मूल्यवान और आदरणीय