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________________ Site प्रशस्ति ***** छंद उपजातिश्रोवेवसेनोऽजनि माथुराणां गणो यतीना विहित प्रमोदः । तत्वावभासी निहित प्रदोषः सरोयहाणा मित्र तिग्मरश्मिः॥१॥ छंद--- धृतजिनसमयोऽजनि महनीयो गुणमणि जलधेस्तदनुतिर्यः । शम यम निलयोऽभितगतिसूरिः प्रबलित मदनः पवनतसरिः॥२॥ छंद रयोद्धतासर्वशास्त्र जलराशि पारगो नेमिषेण मुनिनायकस्ततः । सोऽजनिष्ट भुवने तमोपहः शीतरश्मिरिच यो जनप्रियः ॥३॥ - --- --- माथुर संघके यतिओं के प्राचार्य, सब मुनिओंको आनन्दप्रद ऐसे देवसेन आचार्य हो गये हैं। जैसे सूर्य कमलोंको विकसित करता है, रात्रिका नाश करता है और पदार्थोको दिखाता है वैसे ये देवसेन आचार्य निहित प्रदोष थे अर्थात् दोषरहित थे और अन्य मुनियोंको दोष रहित करते थे । जोबादि तत्वोंका स्वरूप इन्होंने भव्य लोगोंको दिखाया था ।।१।। देवसेनाचार्य के शिष्य अमितगति नामक मुनि थे । वे गुणसमुद्र, शम और व्रतोंके आधारभूत थे, मदन का नाश करने वाले थे उनको बड़े विद्वान भी वंदन करते थे ऐसे आचार्य जैन मतको प्रभावना करने वाले हुये हैं ।।२।। इनके अनन्तर इस माथर संघ में नेमिषेण प्राचार्य हुवे । सर्व शास्त्र समुद्र के दूसरे किनारेको ये प्राप्त हुवे थे । चंद्र जैसा लोकप्रिय रहता है, बसे ये आचार्य लोकप्रिय व अज्ञानांधकारका नाश करने वाले थे ।।३। नेमिषेण आचार्यके शिष्य माधवसेन नामक आचार्य थे। इन्होंने माया और मदनका नाश किया था। ये वृहस्पतिके समान चतुर थे और इनको बुद्धि तत्व
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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