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णवत्तवण्णणं
[ ६६३ (२२) धणिट्ठाणक्ख ते जदि संथारं गिण्हदि तो तदिवसे कालं करेदि, जवि तदिवसे
____ कालं ए करेदि तो पुगतदिवसे चेव प्रागवे मरदि ।। (२३) सदभिसणखत्ते जवि संथारं गिम्हदि जेठाणखत्ते प्रत्थयणवेलाए मरवि ॥ (२४) पुटवभद्दपदणक्खत्ते जदि संथारं गिण्हवि पुण्णवसुणक्खत्ते रत्ति मरदि । (२५) उत्तरभद्दपवे णक्खत्ते जवि संथारं गिम्हवि तो दिवसे वहमाणे वा पुणरादि वा '
मरदि। (२६) रेवतिणक्खत्ते जदि संथारं पिण्हदि तो भधणखसे मराद । (२७) मूलणक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि तो जेट्ट पक्खत्ते भरदि ।।
सम्मत्तं णक्खत्त वण्णणं ।
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(२२) धनिष्ठा नक्षत्र पर शय्या ग्रहण करे तो उसो दिन या आगे उसी नक्षत्रके
आनेपर मरण होगा। (२३) शतभिष् नक्षत्रपर सन्यास धारण करे तो ज्येष्ठा नक्षत्र पर सूर्यास्त के समय
मरण होगा। (२४) पूर्वा भाद्रपद नक्षत्रमें यदि सन्यास ग्रहण करेगा तो पुनर्वसु नक्षत्र पर रातमें
मरण करेगा। (२५) उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में शय्या ग्रहण करेगा तो उसी दिनमें या रात्रिमें मरण
करेगा। (२६) रेवती नक्षत्र पर संस्तर धारक क्षपकका मघा नक्षत्र पर मरण होगा । (२७) मूल नक्षत्र में संस्तर लेवे तो जेष्ठा नक्षत्र में प्रात: मरण होगा।
नक्षत्र गुण वर्णन समाप्त ।