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________________ - - ६६२ ] मरणकण्डिका (१४) चित्ताणक्खत्ते जदि संथारं गिहदि तो मियसिरणक्खते प्रद्धरत्ते मरवि ॥ (१५) सादिणक्खत्ते जवि संथारं गिण्हवि तो रेवदिणक्खत्ते प भावे मरवि ॥ (१६) विसाहणक्खत्ते जवि संथारं गिण्हदि तो असिलेसाणक्खत मरवि ॥ (१७) प्रसिलेसाणक्खत्ते जदि संथारं गिण्हवि तो पुष्व भद्दणक्खसे शिवसे मरदि । (१८) मूलणक्खत्ते जवि संथारं गिहदि तो जेट्टणक्खत्ते पमाववेलाए मरदि ॥ (१९) पुष्वासाढणक्खते जवि संथारं गिहषि तो मियसिरणाखसे पदोसवेलाए मरदि । (२०) उत्तरासाढणक्खो जवि संथारं गिण्हदि तो तहिवसे चेव अहवा भदपवणक्खसे प्रवरण्हे मरवि ॥ (२१) सवरणरणक्य जवि संथारं गिम्हदि तो उत्तरभद्दणक्खत्ते तद्दिवसे कालं करेदि ।। - - (१४) चित्रा नक्षत्र में सन्यास ग्रहण करने पर मासेर नक्षधर आधीरातमें मरण होगा। (१५) स्वाति नक्षत्रपर शय्या ग्रहणे तो रेवती नक्षत्रके समय प्रभात काल में मरण होगा। (१६) विशाखा नक्षत्र पर शय्या ग्रहण करनेसे आश्लेषा नक्षत्र पर मरण होता है। {१७) अनुराधा नक्षत्र पर शय्या धारण करनेसे पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में दिन में मरण होगा। (१८) मूल नक्षत्रपर शय्या ग्रहण करनेसे ज्येष्ठा नक्षत्रपर प्रभातकाल में मरण होगा। (१९) पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में शय्याका आश्रय करनेसे मृगसिर नक्षत्रपर रातके प्रारम्भके समयमें मरण होगा। (२०) उत्तराषाढ़ा नक्षत्रपर सन्यास धारण करनेसे उसी दिन या भाद्रपद नक्षत्र में अपराह्न काल में मरण होगा। (२१) श्रवण नक्षत्र में शय्या ग्रहणको जाय तो उत्तराभाद्रपदमें दिन में मरण होगा।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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