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________________ णवखत्तवण्णणं [ ६६१ (६) अहाणखत्ते जदि संथारं गेहदि तो उत्तरदिवसे मरदि । जदि ण भरवि तदा तह्मि पुरोगवे णखत्रो मरिस्सदि ।। (७) पुणवसुणक्खत्ते जदि संथारं गेहदि तदा अस्सणिरणक्खत्ते अबरण्हे मरवि ॥ (८) पुस्सएक्खत आदि संथारं गेहदि तो मियसिरणक्खत्ते मरवि ॥ (९) असलिसणक्खत्ते जवि संथारं गेहदि तो चिाणक्खते मरवि ।। (१०) मघणखत्ते जवि संपारं गेहदि तो तद्दिवसे मरवि जदि ए मरवितका तसि पुरोगदे णक्षते मरवि ॥ (११) युन्नफग्गुणिणखत जदि संथारं गिणदि तो घणिट्ठाणक्खत्ते विषसे मरदि ।। (१२) उत्तरफगुणिणखत्ते जदि संथारंगिण्यावि तो मुलणक्खत्ते पयोसे मरवि ।। (१३) हत्थणक्ख ते जदि संथारं गिहार तो भरणिणखत्ते विक्से मरदि ।। - - - ----..-. (६) आर्द्रा नक्षत्र में यदि संस्तर किया तो दूसरे दिन मरण होगा यदि न हुवा तो गेके नक्षत्र में उसकी मृत्यु होगी । अथवा पुनः वही आर्द्रा नक्षत्र माने पर मृत्यु होगी। (७) पुनर्वसु नक्षत्र पर बिछौना ग्रहण किया तो अश्विनि नक्षत्र पर अपराह्न काल में मरण होगा। (८) पुष्य नक्षत्र पर शय्या ग्रहण करने से मृगसिर नक्षत्र पर मरण होगा। आश्लेषा नक्षत्रके समय शय्या स्वीकार करनेसे चित्रा नक्षत्र पर मरण होगा। (१०) मघा नक्षत्रके समय शय्या स्वीकार करने से उसो दिन मरण होगा अथवा आगे उसी नक्षत्रके आनेपर मरण होगा । (११) पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में यदि सन्यास ग्रहण के लिये शय्याका आश्रय करे तो धनिष्ठा नक्षत्र के समय दिनमें मरण होगा । (१२) उत्तरा फाल्गुण नक्षत्रमें शय्या ग्रहण की तो मूल नक्षत्र पर सायंकाल में मरण होगा। (१३) हस्त नक्षत्र पर यदि सन्यास लिया तो भरणी नक्षत्र पर दिन में मरण होगा।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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