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दिग::::लया
मन्दसौर,
* एक्खत्तवण्णणं
(१) तं जघा । अस्सिणीणखत्ते अदि संथारं गिम्हवि तो सादिणवखत्ते रस कालं
करेदि ।। (२) भरणिणखत्ते जदि संथारं गेहवि तो रेवविणक्वत्त पञ्चूसे मदि । (३) कित्तिगणक्खत्ते जदि संथारं गेहवि उत्तरफागुणिणखत्ते माझव्हे मरवि ॥ (४) रोहिणीणक्खत्ते जदि संथारं गेहति तो सवणणखते प्रद्धरते मरवि । (५) मियसिरणक्वते जदि संथारं गेहवि तो पुवफागुणणवलो मरवि ।
(२) भणि
-: नक्षत्र गुणों का वर्णन :(१) अश्विनी नक्षत्रके समय क्षपकने संस्तर ग्रहण किया तो स्वाति नक्षत्रके समय
रातमें उसको समाधि मरण प्राप्त होगा। भरणि नक्षत्रके समय क्षपकने समाधिमरणके लिये संस्तरका आश्रय किया सो
रेवती नक्षत्रके समय दिनके प्रारम्भमें उसको समाधिमरण प्राप्त होगा। (३) कृतिका नक्षत्रके समय यदि मुनि बिछोने पर शयन करेंगे तो उत्तर फाल्गुनी
नक्षत्र पर मध्याह्न काल में उसका मरण होगा। (४) रोहिणी नक्षत्र पर संस्तर ग्रहण करने वाले मुनियोंका श्रवण नक्षत्र में आधी.
रात के समय मरण होगा। (५) मृगसिर नक्षत्र पर सल्लेखनाका आश्रय लेनेसे पूर्व फाल्गुनी नक्षत्र पर मुनिका
देहान्त होगा।