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________________ प्राराधनास्तवनम् शार्दूल या सरष्टि रुचिप्रभास्वरतनुः संज्ञान नेत्रोज्ज्वला । सफचारित्रविभूषणा शुचितपः शीलौघमाल्यांबरा || सूक्तिश्रीवर कामिनीप्रियसखो पुष्पेषु विद्वेषिणी । सा घोरेरभिवविता मम हृदि स्तान्नित्यमाराधना २१३१ ॥ शार्दूल या शुद्धधष्टयुक्त वनवलं ज्ञानोल्लसत्कणिकम् । चारित्रोज्ज्वलदीर्घनालममलं शोलोल्लसत्केसरम् ॥ मुक्तिश्री ललनानिवासकमलं बत्ते गुणनिमितम् । सा मे हृत्सरसि स्फुटं विकलतादाराधना पद्मिनी ||३२|| ॥ इति प्राराधना स्तवनम् समाप्तम् । रूपी सुन्दर स्त्रीकी प्रियसखी है, मदनसे द्वेष करती है, बुधजनोंसे वंदित ऐसी यह आराधना मेरे हृदय में नित्य निवास करे ||३१|| आठ प्रकारकी शुद्धि के साथ रहनेवाला सम्यक्त्व हो जिसका दल है, ज्ञान जिसकी कणिका है, चरित्र रूप उज्ज्वल दण्ड - नाल है, निर्मल शील समुदाय हो केसर है, जो मुक्तिरूपी लक्ष्मीका निवास स्थल ऐसे कमलोंको धारण करनेवाली गुणोंसे समुत्पन्न यह आराधना रूपी कमलिनी मेरे हृदयरूप सरोवर में विकास युक्त रहे ||३२|| आराधना स्तवन समाप्त | ६५९ **
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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