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________________ ६५८ ] मरण कण्डिका शार्दूलया पुण्यांबुधिपूरणी कलिमलप्रक्षालनकोद्यमा । या निधय कलेवराणि विमलीकतुं क्षमाराधकान ।। या मासाद्य मनीभयूयपतयो निन्त्यिपंकात्मिकाम् । सा वोऽन्तर्मलदाहमा निहतादादाभनइधर्भुनी ! २८!! शार्दूलया संसारमहाविषापहरणे सन्मंत्रविद्यायते । या कर्मावृतताटचीप्रबहने दावानलोयते ।। या दुर्मोहतमोघटाविघटने चंडाशुरोचीयते । साव: पापमलानि हंत रुचिरा रत्नत्रयाराधना ॥२६॥ __शार्दूलधर्माराममहातरोः फलवती या पुण्य सन्मंजरी । मुक्तिश्रीललनाभिसारणपटुमष्टाक्षरा शंफली ॥ स्वर्गाग्रप्रविभासिसौशिखरारोहकनिः श्रेणिका । सा व: पातु पवित्रमूतिरमला रत्नत्रयाराधना ॥३०॥ समुद्रको पूरित करती है, पापमैलको धोने में समर्थ है, आराधक मुनियोंके शरीरोंको नष्ट करके निर्मल बनाने में यह सक्षम है, ऐसी आराधना नदी अन्तःस्थित कर्ममलदाहको नष्ट करे ॥२८॥ जो संसाररूपो तोब विषका हरण करने में उत्तम विद्याके समान है, कर्मरूपी वल्लीका वन जलाने में दावाग्निके समान है, मिथ्या मोहान्धकारको नष्ट करने में सूर्यकिरण सदृश है ऐसो यह मनोहर आराधना तुम्हारे पाप मलोंका नाश करे १।२६।। यह आराधना धर्मरूपो बगीचेके बड़े वृक्षको फलयुक्त उत्तम मंजरी है, मुक्तिरूपी सदरोको अभिशरण करने के लिये प्रवृत्ति करनेवालो स्पष्ट मधुर वचन बोलनेवाली सखी-दासी है, स्वर्गके अग्रभागपर शोभनेवाले मोक्षरूप प्रासादके ऊपरी भागमें भारोहण करने में नसनीवत् है ऐसी पवित्र व निर्दोष रत्नत्रय आराधना तुम्हारी रक्षा करे ॥३०॥ वह आराधना सम्यग्दर्शन रूप कांति से सुदर है, संज्ञानरूप उज्ज्वल नेत्रवालो, सच्चारित्र रूप प्राभूषणसे युक्त है, पवित्र तप और शोल समुदायरूप माला वस्त्रोंसे संयुक्त मुक्ति
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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