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मरकण्डिका
स्रग्धरा
युनक्ति ॥
या मैत्रख्यातिकांतिद्युतिमतिसुगतिश्रोविनीत्यादिकांताम् । संयोज्योपार्जनीयामवहितमतिभिर्मुक्तिकांत मुक्ताहाराभिरामा मम मदशमनी सम्यगाराधनाली । भूयान्नेदीयसी सा विमलितमनसां साधयन्तीप्सितानि ||६||
स्रग्धरा
स्वांतस्था या कुरापा नियमितकरणा सृष्ट सर्वोपकारा । माता सर्वाश्रमाणां भवमथनपराइनंगसंगापहारा || सत्या चितापहारी बुधहितजननी ध्वस्तदोषाकरश्रीः । बच्चादाराधना मा सकलगुणवती नीरजा वः सुखानि ||७||
स्रग्धरा
उद्यदुःखागदुर्गं गुरुदुरितदवं दग्धुमतीयमाना ।
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तु मोहान्धकारं कलितनिखिला तिग्मरश्मीयमाना ।।
मरणरूप आवर्तका—भंवरका गर्त है उस गर्तमें गिरे हुए जीवोंको निकालकर उस सागर से पार कराके शीघ्र ही शाश्वत आनंद और सुखरूप सिद्धिको प्राप्त कराती है, ऐसी यह श्राराधना रूप नौका जो गुण समुदायसे युक्त है ऐसी नौकापर भव्यजीव नित्य आरोहण करे – आराधनाको धारण करे ||५|| आराधनाकी सेवा करने से सेवकों को मैत्री, ख्याति, कांति, शोभा, बुद्धि, सुगति, संपत्ति, नम्रता आदि रूप स्त्रियों के साथ समागम कराती है और अंत में अवश्य प्राप्त करने योग्य ऐसी मुक्ति रूप स्त्रीको भी देती है यह आराधना मोतियोंकी माला के सदृश सुन्दर है मेरे मदको शांत करनेवाली है, निर्मल मनवाले पुरुषोंके इच्छित पदार्थका साधन करती हुई यह आराधना रूप सखी सदा मेरे निकट रहे || ६ || अत्यन्त दुर्लभ ऐसो यह आराधना मनमें स्थित होनेपर इन्द्रियों को नियंत्रित करती है, संपूर्ण उपकारको करती है, यह समस्त ब्रह्मचर्य आदि आश्रमोंकी माता है, भवका मथन करने वाली है काम और परिग्रहको हटाने वाली, सत्यस्वरूपा, संतापकी अपहर्त्री, बुधजनके हितको उत्पन्न करने वाली, दोषोंके समूहकी विध्वंसिनी सकल गुणोंसे युक्त और पाप रहित ऐसी यह आराधना आपके लिये सुखोंको देवे ||७|| जो अति उत्तुंग दुःखरूपी पर्वतों से घिरा है ऐसे पापरूपो बड़े वनको भस्म करनेके लिये आराधना अग्नि सदृश हैं । मोहान्धकारको नष्ट करने के लिये सूर्यतुल्य है,