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________________ [ ६५३ आराधनास्तवनम् निःशेष वस्तु धातु भवभूतभिमतं कामधेनूयमाना। निर्बाधा या विधत्ताममितगतिसुखं शीघ्रमाराधना वः ॥८॥ श्वभ्रभूमिज्वलह्नि र्याऽविच्छिन्नजलोद्गतिः । अद्य नः शरणं सास्तु रत्नत्रयविशुद्धिता ॥६॥ येषा कुद्दालिका शाता तिर्यग्दुःखांकुरोद्धता । अद्य नः शरणं सास्तु रत्नत्रयविशुद्धिता ।।१०।। मचितितलाभाय येषा कल्पद्रमायते । अद्य नः शरणं सास्तु रत्नत्रयविशुद्धिता ।।११।। दुतिका हुतये येयं महद्धिकसुरश्रियः । अद्य नः शरणं सास्तु रत्नत्रयविशुद्धिता ॥१२॥ मुक्तिदाने क्षमा यास्ति विरतिर्भवसंततेः । अध नः शरणं सास्तु रत्नत्रयविशुद्धिता ॥१३।। एषव परमो धर्म एषैव परमं तपः । एषाहदचो वाच्यमेव ध्यानसंगतिः ।।१४।। . - वांछित पदार्थको देने में कामधेनु समान है, ऐसी यह पारावना निर्बाध अमित ज्ञान जिसमें गर्भित है ऐसा सुख तुम लोगोंको प्रदान करे ।।८।। नरक भूमिमें प्रज्वलित अग्निको शांत करने के लिये आराधना अविच्छिन्न मेघके समान है ऐसी रत्नत्रयमे निर्मल रूप आराधना हमको शरण हो ।।९।। तियंग्गतिके दुःखरूपी अंकुरोंको उखाड़ने के लिये कुदाली सदृश यह आराधना हमारे लिये शरणभूत होवे ।।१०।। मनुष्योंको चितित पदार्थ देने के लिये कल्पवृक्ष तुल्य मानी गयो ऐसी यह रत्नत्रयसे शुद्ध आराधना हमारी रक्षा करे ।।११।। महा ऋद्धिशाली देवोंको लक्ष्मीको बुलाने के लिये जो दुतीके समान है ऐसी यह रत्नत्रयसे निर्मल बनी हुई आराधना हमारी रक्षा करे ॥१२॥ जो मक्ति प्रदान करने में समर्थ है, भवपरंपराका नाशक ऐसी यह रत्नत्रयसे विशुद्ध आराधना हमको आज शरणभूत होवे ।।१३।। यह आराधना ही उत्कृष्ट धर्म है, उत्कृष्ट तप है, जिनेश्वरने दिव्य ध्वनि द्वारा इसीका कथन किया है, यही ध्यान प्राप्तिमें कारण है ।।१४।। आराधनाको प्राप्ति होना हो संसार में सर्वोत्कृष्ट लाभ माना जाता है, यही
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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