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* पाराधनास्तवनम् ।
छंद-स्रग्धरापंध: स्वपिवगंप्रभवसुखफलप्रापणे कर्मवल्ली । नामाबापाविधायिप्रचितकलिमलक्षालने जह्न कन्या ।। रागषाविभाविष्यसनधनवनच्छेदने छेवनी या । सारामाराधनासौ वितरतु तरसा शाश्वती वो विभूतिम् ।।१।।
स्रग्धरा
यामासाधावन त्रिदशपतिशिरोघष्टपादारविन्दाः । सधः कुवावदातस्थिरपरमयशः शोधिताशेषदिक्काः ।। जायंते जंतवोऽमी जनजनितमुवः केवलज्ञानभाजो । भूयावाराधना सा भवभयमयनी भूयसे श्रेयसे यः ।।२।।
यह आराधना स्वर्ग और मोक्ष में उत्पन्न हुए सुखरूप फलको प्राप्त कराने में बंधके समान है । नाना प्रकार की बाधाओंको उत्पन्न करनेवाले पापरूप कीचड़ को धोने के लिये गंगा नदी के समान है । रागद्वेषादिसे उत्पन्न हुए कष्ट और संकटरूप सघन वन को काटने के लिये कुल्हाड़ी सदृश है ऐसी यह रम्य आराधना आप लोगोंको शीघ्र ही शाश्वत विभूतिको देवे ।। १।। जिस आराधनाको प्राप्त करके-धारण करके ये संसारी भव्य जीव नम्र हुए देवोंके मस्तक द्वारा स्पशित है चरण कमल जिनके ऐसे हो जाते हैं अर्थात् देवों द्वारा बंध होते हैं तथा कुद पुष्पके समान उज्ज्वल तथा स्थिर ऐसे परम यश द्वारा शुद्ध किया है समस्त दिशानोंको जिन्होंने ऐसे होते हैं अर्थात् उनका यश सर्वत्र फैलता है । लोगोंको आनंद उत्पन्न करनेवाले एवं केवलज्ञानको प्राप्त करने वाले होते हैं, ऐसो संसारके भयका नाश करने वाली यह आराधना तुम लोगोंके विशाल कल्याणके लिये होवे ।।२।।