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पंडितपंडित मरणाधिकार
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छंद-उपजाति
प्राराधना जन्मवतश्चतुर्धा निषेव्यमाणा प्रथमे प्रकृष्टा । भवं तृतीये विद्यातिमध्यासिद्धि जघन्या खलु सप्तमे सा ।। २२३१||
छंद-उपजाति
श्राराधनंषा कथिता समासतो ददातु सिद्धि मम मंबमेधसः । अबुध्यमान रखिलं जिनागमं न शक्यते विस्तरतो हि भाषितुं ।। २२३२ ॥
पंडित पंडित मरण वर्णनका उपसंहार
इसश्रेष्ठ पंडित पंडित मरण द्वारा विमल सोख्यको उत्पन्न करने में चतुर ऐसो सिद्धि रूपी वधू वश होती है अर्थात् सिद्ध अवस्था प्राप्त होती है, जैसे निर्दोष गुण द्वारा सुभगता - सर्वजनप्रियता प्राप्त होती है ।।२२३०॥
पंडित पंडित मरणका वर्णन समाप्त |
आराधना फल --
जो भव्य जीव सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र और सम्यक्लप रूप चार आराधनाओंका उत्कृष्ट रूपसे सेवन करते हैं वे उसी भवसे मुक्त होते हैं और जो मध्यम रूपसे उक्त प्राराधनाओं का सेवन करते हैं वे तृतीय भवमें तथा जघन्य रूप से श्राराधनाओं का सेवन करनेवाले सातवें भव में मुक्त होते हैं ||२२३१ ॥
अब ग्रंथकार अमितगति आचार्य आराधनाओंका कथन करनेवाले इस ग्रंथ को पूर्ण करते हुए ग्रंथ रचना फलकी याचना करते हैं
मेरे द्वारा यह आराधना संक्षेपसे कहो गयी है यह मंद बुद्धिवाले मेरे लिये सिद्धिको - मोक्षको प्रदान करें। जो संपूर्ण जिनागमको जाननेवाले हैं ऐसे महान् आचार्यो के द्वारा भी इन आराधनाओंका विस्तारसे वर्णन नहीं किया जा सकता अर्थात् जो संपूर्ण शास्त्रोंके पारगामी हैं वे भी आराधनाओंका सविस्तार वर्णन नहीं कर सकते तो मुझ जैसे मंद बुद्धिवाले कैसे कर सकते हैं ? नहीं कर सकते । अतः मैंने इन चार आराधनाओंका से वर्णन किया है ।।२२३२ ॥
आगे ग्रन्थकार अपनी लघुता प्रगट करते हैं