________________
पंडितपंडित माधिकार
निष्ठिताशेषकृत्यानां गमनागमनादयः
I
व्यापारा जातु जायंते सिद्धानां न सुखात्मनाम् ।।२२० ।। कर्मभिः क्रियते पातो जीवानां भवसागरे । तेषामभावतस्तेषां पातो जातु न विद्यते ।। २२१०॥ क्षुधातृष्णावयस्तेषां न कर्माभावतो यतः । आहारास्ततो नार्थस्तत्प्रतीकारकारिभिः ||२२११॥ यत्सर्वेषां ससौख्यानां भुवनत्रयर्वातिनाम् । ततोऽनंतगुणं तेषां सुखमस्त्यविनश्वरम् ॥२२१२ ॥ प्रत्यविग्रहसंस्थानसदृशाकृतयः स्थिरा: 1 सुखदुःखविनिर्मुक्ता भाविनं कालमासते ।२२१३॥ तेषां कर्मव्यपायेन प्राणाः संति दशापि नो । न योगाभावतो जातु विद्यते स्पंदनादिकम् ॥ २२१४।।
[ ६४३
अशेष कार्योंको जो पूर्ण कर चुके हैं ऐसे निष्ठित कृत्य एवं अनंत सुखोंका अनुभव करनेवाले सिद्ध प्रभुके गमनागमन आदि क्रियायें कभी भी नहीं होती हैं ।।२२०६ ॥ जीवों का संसार सागर में गिरता कर्म द्वारा हुआ करता है, उन कर्मोका सिद्धों के अभाव हो चुका है अतः वे कभी भी संसार में लौटकर नहीं आते हैं ।। २२१०।। तथा जिस कारण से उन सिद्धोंके कर्मोका प्रभाव है उस कारणसे उनके भूख प्यास, रोग आदि वेदनायें नहीं होती और वेदनाके अभाव में वेदनाका प्रतीकार करने वाले आहार, पानो, औषधि आदि सिद्धों को कुछ प्रयोजन नहीं रहा है ।।२२११।। तोन लोकमें जो सुख संपन्न जीव हैं उन सबको जितना सुख होता है उन सबके सुखोंसे अनंतगुणा शाश्वत सुख सिद्धों होता है ।। २२१२ ।।
I
वे सिद्ध अंतिम शरीर के संस्थान के सदृश आकार वाले होते हैं अर्थात् जिस शरीरसे मुक्ति प्राप्त की है उस आकार एवं अवगाहनामें सिद्धोंके आत्मप्रदेश स्थित रहते हैं, उक्त आकारसे कभी विचलित नहीं होनेसे स्थिर हैं । संसारके संपूर्ण सुख और दुःखों से निर्मुक्त हैं वे भविष्यत् अनंतकाल तक सदा इसीतरह रहते हैं ।।२२१३ । सिद्धोंके इन्द्रिय, आयु आदि देशों प्राण नहीं होते हैं तथा तीनों योगों का अभाव होने से उनके हलन चलन - स्पंदन नहीं होता है ।। २२१४ || कर्मोंका अभाव हो जाने से वे पुनः