SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 682
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४२ ] परणनगरको यात्यविग्रहया गत्या निर्याघातः शिवास्पवम् । एकेन समयेनासौ न मुक्तोऽन्यत्र तिष्ठति ॥२२०५।। विच्छिद्य ध्यानशस्त्रेण देहत्रितयबंधनम् । सर्वद विनिर्मुक्तो लोकानमधिरोहति ॥२२०६॥ ईषत्प्रारभारसंज्ञायां धरित्र्यामुपरि स्थिताः । त्रैलोक्याग्नेऽतिष्ठन्ति ते किंचिन्यूनयोजने ॥२२०७॥ न धर्माभावतः सिद्धा गच्छन्ति परतस्ततः । धर्मो हि सर्वा कर्ता जीवपुद्गलयोगः ॥२२०८।। मुक्त जीव मोड़ रहित गति से बिना किसी रुकावटके एक समय में मोक्ष शिला पर जाकर विराजमान होते हैं, वे कहीं अन्यत्र नहीं ठहरते ॥२२०५।। इसप्रकार ध्यानरूप शस्त्र द्वारा औदारिक आदि तीन शरीरोंके बंधनको छेद कर समस्त द्वन्द्व-विभाव परिणामोंसे रहित हुए वे भगवान् लोकान में आरोहण करते हैं ।।२२०६॥ लोकानमें ईषत् प्राम्भारा नामको पृथिवीके ऊपर भाग स्वरूप लोक्यके अंतमें वे परमात्मा अबस्थित होते हैं, उस पृथिवीसे कितने ऊपर जाकर ठहरते है ? कुछ कम एक योजन प्रमाण ऊपर जाकर ठहरते हैं १ ।।२२०७।। विशेषार्थ-सर्वार्थ सिद्धि नामके अंतिम स्वर्ग विमानसे बारह योजन (महायोजन) ऊपर जाकर चन्द्रमा समान उज्ज्वल, छत्राकार ईषत् प्रारभारा नामकी आठवों पृथिवी है इसका प्रमाण अढाई द्वीपके प्रमाणके समान पंतालीस लाख महायोजन का है इसे हो सिद्ध शिला, सिद्धालय, मोक्षशिला इत्यादि अनेक नामोंसे कहते हैं । इस पृथिवीसे आगे तोन वातवलय हैं प्रथम घनोदधि वातवलयकी मोटाई वहां दो कोसको है दूसरे घनवातबलयको एक कोस तथा तीसरे तनुवातवलयको मोटाई कुछ कम एक कोस अर्थात् पौने सौलह सौ धनुष प्रमाण है, अत: अष्टम पृथिवीसे एक योजनमें कुछ कम ऊपर जाकर अंतिम वातवलयके अंत में सिद्धभगवान् विराजमान होते हैं अतः मोक्ष शिलासे कुछ कम एक योजन ऊपर जाकर स्थित होते हैं ऐसा यहां कहा है। लोकान के आगे धर्म द्रव्यका अभाव होने से सिद्ध भगवान् आगे गमन नहीं - करते क्योंकि जोब और पुद्गल के गमन में सहायक धर्मद्रव्य ही होता है ॥२२०८॥
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy